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” कुहा का कहर”

जागरण संपादकीय ब्लॉग
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सूर्य देव की क़ृपा दो-तीन दिनों से दिख रहा है. वरणा पिछले एक महीने से जन-जीवन लगभग अस्त- व्य स्त हो गया था. खास कर उत्तर भारत में पता नहीं ग्लोबल वॉरमिंग का असर है या आइस एज का. कुहा के कारण दो- तीन ट्रेनें आपस में भिड़ी, भारी संख्या में सड़क पर वाहन लड़े, कई मौतें भी हुई. सैकड़ो ट्रेनें रद्द हुई. विमान रद्द हुए. देरी से चलने वालों की तो शायद चर्चा करना ही व्यडर्थ है. लगता था जीवन का रफ़्तार थम सा गया है।
मेरे कूछ मूल प्रश्‍न हैं-

* विज्ञान के इस युग मे क्या इसका कोई इलाज नहीं?
* क्या हवाई अड्डों पर, सडकों पर, एवं रेल पटरियों पर कुहे से लड़ने का कोई साधन नहीं?
* क्या मौसम विज्ञान की भविष्यवाणी के हिसाब से यात्री को पूर्व सूचना नहीं दी जा सकती है ?
* क्या विलंब होने पर यात्रियों के सुविधा का ख्याल नहीं रखा जाना चाहिए ?
* घंटो लेट चल रही ट्रेन में यात्रियों के लिए खाने – पीने का कोई इंतजाम नहीं, यहाँ तक की बाथरूम में भी पानी उपलब्धह नहीं रहता.
* हवाई यात्री दर – दर भटकते रहे .
कोई मIई – बाप नहीं.
यह कहानी नहीं मेरा अनुभव है. ज़रा सोचो भाई ? कुछ करो ? क्योंकि यह मात्र एक दिन, एक सप्‍ताह, या एक महीने का नहीं, वरण हर वर्ष का मौसम होने वाला है.

आनन्द माधव

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