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जरा सोचिये: क्योँ बनें हम शिक्षक?

जागरण संपादकीय ब्लॉग
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१९८५ से मेरी पत्नी पटना विमेंस कॉलेज मैं पढ़ा रही है. २१ साल हो गए अब तक मात्र सिनिअर लेक्चरार ही हो पाई है. २००५ से रीडर का प्रमोशन होना है, लेकिन बिहार सरकार होने दे तब तो. यू जी सी द्वारा निर्धारित सारी अहर्ताओं को पूरा कर रही है पर न तो यू जी सी की सैलरी ही मिल रही है न ही पदौन्नती ही. किसी को कोई चिंता नहीं है लेकिन बहुत अपेक्षाएँ है, की ये बच्चों को देश का भविष्य बनाये एक नए बिहार का निर्माण करे.
ये स्थिति लगभग सारे शिक्षकों की है. अगर नियुक्ति में बेईमानी हुई है या प्रमोसन में तो इसका खामियजा सभी को क्यों भोगना चाहिये. ऐसे में टीचर अशांत और अशंतुष्ट न हो तो क्या हो? महंगाई सुरसा के तरह बढती जा रही है. टीचरों को न तो पैसा ही मिल रहा है और न सम्मान ही. अगर घर में दूसरा ब्यक्ति कमानें वाला नहीं हो तो कोलेज के टीचरों के घर कई शाम चूल्हा नहीं जले. मगर कौन देखनें वाला है यह सब. 21 साल पढ़ा कर भी आप नौकरशाहों के दया के पIत्र बने रहते हो, कोई माई बाप नहीं. कोई भविष्य नहीं.
लेकिन शायद लोग भूल रहे हैं, ये शिक्षक ही क्रांति के बीज बोतें हैं जो अच्छे अच्छों के सर्वनाश का कारण बनतें हैं. इससे पहले की इनके सब्र का घडा भर जाये कोई ठोस कदम इस दिशा में उठाना चाहिये? इससे पहले की कोई इस पेशे में जाने से बचने लगे कोई ठोस निर्णय होना चाहिये? क्या मिला पूरे समय छात्र जीवन में रिजल्ट अच्छा करनें का प्रयास किया. टॉपर बनें, मनपसंद पेशे में गए अब पछता रहे हैं, किसी को शिक्षक न बनने की सलाह दे रहे हैं. कम से कम बिहार में तो नहीं ही?
जरा सोचिये, क्योँ बनें हम शिक्षक ?

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