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इज्जत के लिए हत्या: एक बर्बर मानसिकता का प्रतीक!

जागरण संपादकीय ब्लॉग
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केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम से मुलाकात के बाद केंद्रीय महिला व बाल विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कृष्णा तीरथ ने कहा कि जल्दी ही उनका मंत्रालय महिला विशेषज्ञों की एक समिति गठित करेगा, जो इस बात का अध्ययन करेगी कि आखिर ऐसी हत्याओं को करने की मानसिकता क्या है, और उसे कैसे बदला जा सकता है। अच्छी बात है, कोई पहल तो हुई. लेकिन समझाना है की १८-२० साल जिस बहन, बेटी के साथ हम रह रहें हैं उनकी हत्या करनें मैं जरा भी हिचक नहीं होता. हम जंगली नहीं तो क्या हैं? और यह ज्यादातर लड़कियों के साथ ही क्यों होता है. बलात्कारी भाई , बेटा , पोता को बचनें मैं हमें कोई संकोच नहीं होता लेकिन बहन, बेटी, पोती के हत्या का कोई दर्द नहीं होता?
कुछ दिनों तक जोर शोर से हम लोग कन्या भ्रूण हत्या की बात कर रहे थे, स्त्री- पुरुष के बीच घटते प्रतिशत का हिसाब समझा रहे थे. लेकिन आज हम ओनर किलिंग की बात कर रहें हैं? कितने पीछे चले गए हम, शायद बर्बर युग मैं. समाज के ठीकेदारों अपने को न्याय का देवता मIन रहें हैं, जो मर्जी आये फैसला दे रहे हैं और हम सियासत की राजनीत सेंक रहें हैं. शर्म आनी चाहिए हम इसी समाज मैं रह रहें है.
हमें फैसले में देर नहीं करना चाहिए. समाज के इन ठीकेदारों के लिए कड़ा से कड़ा कानून बनाना चाहिए. इनका सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए. मेरा तो मानना है की इन्हें ऐसी सजा मिले की दूसरा कोई हिम्मत न करे इस जघन्य अपराध का.

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