जागरण संपादकीय ब्लॉग
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बात उन दिनों की है जब मैं आज अख़बार के लिए बतौर संवाद सूत्र काम करता था( १९८६). श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा का साक्षात्कार कर रहा था. मुख्य मुद्दा विकास से जुडा था, खासकर बिहार के, उन्होंने कहा ” बिहार की धरती नौकरशाहों के बोझ से दबी जा रही है, नेतागण तो सिर्फ दिखने के दन्त हैं.”.
शायद यह आज भी सही है?
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